अतीत के आगोश में जाने कितनी कहानिया छुपी आज भी है, जाने कितने साल गुजर गए, जाने कितने लम्हें बीत गए, शायद इंतज़ार है उन्हें एक दस्तक की जो उनकी खामोशियो को तोड़े, और इतिहास के पन्नो की अनसुलझी पहेलियाँ को सुलझाये ।
केहते है सच कभी छुपता नहीं और झूट की उम्र लम्बी नहीं होती, लेकिंग क्या सच है क्या झूठ ये वक़्त पे ही छोडना सही होगा। मेरी तलाश तो कभी खत्म नहीं होगी और ये सफर तो मिलो लंबा है । ऐसी ही एक सफर मुझे आज एक खामोश गाँव में ले आई है जहाँ कभी इंसानो की भीड़ थी और आज सिर्फ सन्नाटा, ख़ामोशी और सिर्फ खली माकन.
कुलधरा, जैसलमेर से 15 km पच्छिम राजस्थान के एयरफोर्स स्टेशन के पास एक गाँव ….गाँव… मेरे ख्याल से इससे गाँव बोलना ठीक नहीं होगा, शायद इससे इसकी पहचान धुधली न पड जाये. गाँव तो इंसानो से होता है वीरान खड़े मकानो से नहीं.
Kuldhara Village |
केहते है यहाँ की फ़िज़ाएं, सूनी गालिया, खाली खण्डार सब कुछ प्रेतवाधित (haunted) है, कुछ पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स ने यहाँ पे, टेम्परेचर में अचानक होते परिवर्तन को महसूस किया है.
क्या हुआ होगा यहाँ ?क्यों हर माकन सूनसान है ?क्या वजह है यहाँ फैले ख़ामोशी के पीछे ?
कुलधरा जिसकी कहानी की शुरुवात 1291 में हुई थी और ये गाँव कभी पालीवाल ब्रहिमनस का हुआ करता था, जो एक बहुत ही समृद्ध कबीला था और व्यावसायिक कौशल और कृषि ज्ञान के लिए जाने जाते थे.
वो रेगिस्तान में गेहू की फसल काम पानी में उपजाना जानते थे. लेकिन सवाल ये उठता है की इतना सामर्थ होने के बावजूद भी क्यों उन्हें रातो रात अपनी बसी बसई दुनिया, आपने घर का त्याग करना पड़ा. सं 1825 में कुलधरा के सभी लोगों और आसपास के 83 गांवों वाले रक्षाबंधन की एक रात को अंधेरे में गायब हो गए. यही एक वजह है की आज भी कुछ पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन नहीं मानते.
वो रेगिस्तान में गेहू की फसल काम पानी में उपजाना जानते थे. लेकिन सवाल ये उठता है की इतना सामर्थ होने के बावजूद भी क्यों उन्हें रातो रात अपनी बसी बसई दुनिया, आपने घर का त्याग करना पड़ा. सं 1825 में कुलधरा के सभी लोगों और आसपास के 83 गांवों वाले रक्षाबंधन की एक रात को अंधेरे में गायब हो गए. यही एक वजह है की आज भी कुछ पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन नहीं मानते.
कथा-कहानी के अनुसार उस वक़्त वह का राज्य मंत्री सलीम सिंह हुआ करता था, उसकी नज़र कुलधरा के मुखिया (पालीवाल ब्राह्मण) की खूबसूरत बेटी पे पड़ी और उससे शादी करना चाहता था. उसने धमकी दी की अगर उसकी शादी मुखिया के लड़की से नहीं हुयी तो गाँव वालो से ज्यादा लगान वसूल करेगा. आस पास के 83 गाँव वालो के साथ कुलधरा के प्रमुख ने फैसला किया की वो सब लोग गाँव छोड़ के कही और बस जायेंगे, लेकिन किसी ने उन्हें जाते हुए नहीं देखा और कोई भी ये जान नहीं पाया वो आखिर गए कहाँ, वो बस कही गायब से हो गए.
इन खंडरो को देख के जाने क्यों बुरा लगता है, एक इंसान की वजह से गाँव में सन्नाटा छा गए और और नजाने वहां के लोगो के साथ क्या हुआ. आज भी गाँव की देहलीज पे बानी हुई सैंड स्टोन गेट की जैसे किसी के इंतज़ार में खडी है. यहाँ आके ऐसा लगता है जैसे सच में हम किसी और ही दुनियां में आ गये है.
टेढ़े - मेढ़े रास्ते और दोनों तरफ रेत और पत्थरो से बने खूबशूरत घर पालीवाल ब्राह्मणों के कुशल रचनाओ को दर्शाता है. और गाँव के बीच में एक मंदिर, मानो यहाँ घाटी घटनाओ का एक मात्र गवाह है लेकिन हमेशा की तरह इंसानो को कुछ मालूम नहीं और भगवान चुप चाप खड़ा है.
एक समय का समृद्ध गाँव कुलधरा, अब सिर्फ खंडहर से भरी जगह में बदल गया है।
क्या वो सच में कही चले गए ?
क्या उन्हें मरवा दिया गया ?
ये कुछ सवाल ऐसे है जिसके उत्तर वक़्त जाने कब तक अपनी दामन में यु हे छुपाये रखेगा. अगर सच की कोई उम्र नहीं होती, तो जाने कब हम जान पाएंगे की क्या हुआ था वहां और आज क्यों वीरान पड़ी है कुलधरा
कुछ अनसुलझे पहेलियों के साथ आपको मेरा अलविदा लेकिन मेरा सफर अभी यही खत्म नहीं होता. एक बार फिरसे एक अनजान गजह और एक अनोखी कहानी के साथ मैं फिर लौटूंगा.
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